सोमवार, 22 नवंबर 2010

स्कूल क्यूँ गया


"अगर सफल इन्सान बनना हैं तो शिक्षा का मार्ग उतम हैं" स्कूल की मिटती यादो में बस एक यही लाइन याद हैं

समझ नहीं आता १२ साल स्कूल क्यूँ गया क्या सिखा क्या मिला स्कूल ने इंसानों के अन्दर सपनो की दुकान खोल दी जो वकत के साथ बड़ा होता चला गया याद हैं मुझको माँ की १५० रूपये की वोह वेतन और पापा का कुल आय २०० जिसमे घर भी चलता था और हम खुश भी थे पर यह उन दिनों की बात हैं जाब हम बच्चे थे आज जवानी की दहलीज पे पैसा भी हैं आराम भी पर सुकून नहीं कल तक साइकिल की तेज रफ़्तार किसी जेट प्लेन की तरह लगती थी और आज bike की स्पीड साइकिल जैसी लगती हैं पहली से लेकर १२ तक की पढाई में सिर्फ इतना जान पाया की समाज के इस बदलते दौर में खुद को बचाना हो तो दौड़ लगाओ फिर अगर जिन्दगी के कुछ फैसले अगर खुद से लेना हो तो किताबो की ज्ञान जो कभी सरकारी स्कूल में गुरूजी ने सिखाया था माँ बाप भगवन होते हैं उनका अनुसरण करो स्कूल हमें मूल ज्ञान से दूर अपना एक नया ज्ञान दे जाता हैं जिसके अन्दर सचाई दूर दूर तक नहीं होती १२ पास कर के जब collage की सीढियों पे पैर रखा तो scholl की यादे पीछे चली गई और जवानी की दहलीज ने आधुनिकता को सलाम किया प्यार हुआ कभी तकरार हुआ कभी खुद से कभी समाज से कभी परिवार से पर सबका जवाब स्कूल की वही घिसी पिटी ज्ञान में de दिया jata जो सरकारी स्कूल के गुरूजी ने सिखया था जिन्हें खुद ज्ञान की कमी थी

कल तक स्कूल की दहलीज पे खड़ा एक सभ्य समाज का इन्सान बन्ने की कोशिश जरी थी पर आज लगता हैं जैसे स्कूल क्यूँ गया ओशो ने कभी कहा था स्कूल गुलामी और और दब के रहना सिखाती हैं जहा विचारो की या इंसानों की स्वत्रंता नहीं होती

कभी सरकारी स्कूल की बोरे पे बैठ के सुनता था माँ बाप इस्वर होते हैं पर वास्तविक ज्ञान यह हैं जो आज जिन्दगी के दहलीज पे खड़ा हो के सोचता हु इश्वर सिर्फ लोगो को अपने विचारो को जबरदस्ती थोप के उनसे पूजा करने को कहता हैं जहा आपकी अपनी सोच काम नहीं करती

आज कभी रात की सन्नाटो में कभी अकेला सोचता हु बस यही लिखने को मन करता हैं

" कभी कभी जब मैं रोता था तुम आ जाती थी माँ कुछ कहने तब शायद तुम माँ थी "

आज कभी जब रोता हु तुम मुझे और रुलाती हो और माँ अब तुम शायद बहुत कुछ कह जाती हो "

4 टिप्‍पणियां:

  1. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
    -----------------------------------------
    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

    जवाब देंहटाएं
  2. भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    की तरफ से आप, आपके परिवार तथा इष्टमित्रो को होली की हार्दिक शुभकामना. यह मंच आपका स्वागत करता है, आप अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच

    जवाब देंहटाएं