शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

मेरा सपना

"मैं कोई सपनो की दुनिया में डूब कर कविता नहीं लिख पाता क्यूंकि मैं सपने नहीं देखता "
आधुनिक युग का हर कवी सपने के साथ कविता नहीं लिखता क्यूंकि वोह हकीकत की दुनिया जीता हैं और कुछ लिख कर बच्चो के सपने पूरा करता हैं | कुछ कवी अपने रचनाओ को बंद आलमारी में समेट कर रखते हैं क्यूंकि बाहर उनकी रचनाओ को टक्कर "मुन्नी बदनाम"हुई देती हैं| साहित्य को दिल में बसाये मैं कभी कुछ लिखता हु खुद ही पढता हु और खुद ही मिटाता हु | एक बार कोशिश की थी सपनो के दुनिया में डूबकर कुछ प्रेम गीत लिखने की पर हर बार की तरह प्रेम को पैसे की तराजू में तौला गया और मुझे एक साहित्यकार से ब्रांडेड बनने को मजबूर कर दिया गया | पर फिर भी रात के तन्हाई में लेखक मन हिमाकत करता हैं और कलम से कुछ टूटी फूटी या यु कहे एक बेनाम दर्द की अनकही दास्ताँ लिखने को मजबूर कर देता हैं |
मैं लिखने की शैली बदलता रहता हु क्यूंकि इस आधुनिकता में हर बार अपने आप को बदलना पड़ता हैं |
अब मुझे गाँव की यादो में कविता लिखने का मन नहीं करता क्यूंकि गाँव पे कोई subject अब पसंद नहीं की जाती | याद हैं कभी पढ़ा था भारत की आत्मा गाँव में बस्ती हैं तब शायद स्कूल में था अब शायद मैं दुनिया में हु |
अब माँ के ऊपर कविता लिखने में थोड़ी संकोच होती हैं क्यूंकि ब्रांडेड शहर में यह विषय पुराना faishion हो गया हैं
पर कभी माँ की यादो में डूब कर सोचता हु की बच्चा अच्छा था कम से कम अपनी माँ को तोता मैना की कविताओ को सुना कर खुश कर देता था |
कुछ लिखने की मज़बूरी ,पर दिल की हिमाकत लिखने को तब मजबूर करती हैं जब अपने ही घर में परायो सा अनुभव होता हैं जब अपने ही देश में डर लगता हैं तब शायद कवी मन कुछ कहता हैं कुछ लिखता हैं | मुझे मालूम हैं अब कोई दिनकर नहीं होगा क्यूंकि देश तब सपनो और उम्मीदों पे जीता था और आज सब कुछ होकर भी नाउम्मीदी में जीता हैं | अब हर कवी को प्रेम गीत में शब्द नहीं मिलते क्यूंकि मोह्बत भी अब आँखों में नहीं क्रेडिट कार्ड में बसते हैं इसलिए हर कवी किसी विषय पे नहीं बस अपनी किस्मत की कहानी लिखता हैं सपनो से दूर हकीकत में जीता हैं |

अवि

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