शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

झारखण्ड लाइव







मैं झारखण्ड का हु जैसे हिंदुस्तान में हर राज्य का एक सर नाम होता उसी तरह मेरा सर नाम झारखंडी हैं 15 नोवम्बर २००० जिस दिन हिंदुस्तान के नक्से पे एक नया नाम जुड़ा वोह झारखण्ड ही था सभी को आशा थी नए राज्ये में सब कुछ नया होगा बेरोजगारों को नौकरी अछि शिक्षा नयी उम्मीदे नयी आशाये उन दिनों मैंintermidiate का स्टुडेंट था यानि रोजगार पाने के सपने जिस उम्र में दस्तक देती हैं मैं उसके मुख्य द्वार पे खड़ा था हम - दोस्त अक्सर बाते करते थे की अब शायद हम बाहर नहीं जायेंगे एक उम्मीद जो उम्र के हिसाब से सकारात्मक दिशा मेंजगती हैं उसी पहलु को दिल में लिए मैंने अपना बी.कॉम वही से पूरा किया हर साल एक उम्मीद जगती रही अबशायद कुछ बदलेगा एक दिन महसूस हुआ जैसे कुछ नहीं बदला पढाई पूरी की और सोचने लगा अब क्या| पापाकुछ कहते नहीं पर महसूस होता अब बहुत हो गया कल तक मुझे मुझे उम्मीदों भरा झारखण्ड दीखता था पर अब नाउम्मीदी के पहलु से जाब झाँका तो महसूस हुआ जैसे बहुत कुछ बदल गया हैं कल तक crime कम था अब लाशो की गिनती नहीं की जाती कल तक मेरा शहर उम्मीदों के मीनार में पे खड़ा अपने अक्स को निहारने की कोशिशकर रहा था की शायद मेरी तक़दीर बदले पर उसने भी सपनो में जीना छोड़ ख़ामोशी से एक बुत की तरह अपनेलोगो को देख रही हैं |
कुछ दिनों के बाद डेल्ही आया महसूस हुआ अमेरिका में पहुच गए | सागर पुर के उस छोटे से इंस्टिट्यूट में मैंने खुदको झारखण्ड का बताया तो teacher से लेकर स्टुडेंट हँस पड़े कारन था किसी को पता नहीं था झारखण्ड कहा हैं |
साल तक घर नहीं गया पर उस मिटटी की यादे आज भी दिलो में हैं उतनी खुबसूरत हैं |
२००९ में जब घर गया तब एक ब्रांडेड कम्पनी का ब्रांडेड नौकर था जिसे अंग्रेजी के कुछ घिसे पिटे शब्द मालूम थे जो झारखण्ड को बेवकूफ बनाने के लिए काफी था |
इस बार पहली बार मैंने लाइव झारखण्ड देखा जिसकी कुछ यादे आपसे कह रहा हु |
रांची एअरपोर्ट से १६५ km. की दुरी पे मेरा होम town हैं | बस में खिड़की वाली सिट पे बैठा झारखण्ड को देखने कीकोशिश कर रह था पर बाहर सिर्फ उदास और नम आँखे ही दिखाई पड रही थी क्यूंकि दिन पहले पुलिस औरनक्सलियो की लड़ाई में कितनो ने बहुत कुछ खो दिया था | सड़क की और आँखे गड़ाई तो गढ़हो में बस के tire
सुस्त चाल से हिचकोले खा रही थी ढाबे पे बस रुकी देखा कुछ सहमे चेहरों को जो अपने गमो को छुपाये लकडिया जंगलो से ला रहे थे |
किसी से बात की तो पता चला कल ही यहाँ भूख की वजह से एक इन्सान मरा हैं |तब शायद पिज्जा हट में बैठे उनदोस्तों की याद आई जो पिज्जा में 500 भी खर्च कर देते हैं हिंदुस्तान अब दोहरा चरित्र जीता हैं एक आमिर औरगरीब} गरीब वाला हिस्सा शायद मैं भी जीता हु क्यूंकि मेरा राज्य गरीबी में जीता हैं |
अभी मैंने देखा एक लड़की को जो २०-२२ साल की होगी जिसे ढाबे पे बैठे सभी घुर रहे थे क्यूंकि कपडे जो इन्सान की बुनियादी जरुरत हैं उसकी बदन को ढकने के लिए काफी नहीं थे |
सामने की एक स्कूल था जिसमे crpf और bsf जिसका निर्माण बाहरी मुल्क से सुरक्षा के लिए बनाया गया थाआज अपने ही लोगो के हाथो मारे जा रहे हैं | झारखण्ड के स्कूल अब sarwasti की वंदना से शरू नहीं होते बल्कि बोम्ब के धमाको से शरू होती हैं बच्चे स्कूल नहीं जाते क्यूंकि वह पोलिसे अपना कैम्प ड़ाल कर बैठी हैं |
घर पहुचने पे देखा मेरा गाव अब आधुनिकता के लिबास ओढ़े मोबाइल में तब्दील हो गया हैं अब वह की जरुरतमोबाइल हैं|
मार्केटिंग इसको कहते हैं जहा पानी खाना पढाई मौजूद नहीं वहा मोबाइल के रिंग टोने में शकीरा भजन सुनाती हैं |
अपने चचरे भतीजे ने पढाई छोड़ दी कारण बाप की नौकरी इतनी नहीं देती की 6 परिवार का पेट पाले तो पढाई एकबोझ हैं |
अब गुटका खाकर बस घूमता हैं पूछा तो बताया की यहाँ कुछ नहीं रोजगार मौलिक सुविधाए अब एक हीरास्ता हैं crime करो क्यूंकि मेरे गांव का एक लड़का जो कभी maths में अच्छा था अब गोलिया चलाता हैं यानिहमरी भाषा में एक don हैं |
मेरी माँ एक teacher हैं एक दिन उसके स्कूल गया तो देखा १५ साल पहले भी वोह जमीं पे बैठ कर पढ़ाती थी आज भी फर्क सिर्फ इतना अब एक छोटा सा चबूतरा हैं जहा वोह बैठती हैं हर क्लास में १०० बच्चे थे जो पढने के लिएकम दोपहर की खिचड़ी(मिड डे मिल) के लिए ज्यादा आते हैं जो खाने के बाद अपने घर के कम और मजदूरी मेंलग जाते हैं |
माँ से पूछा की कुछ नया fund नहीं आया तो माँ ने कहा सब पैसा गांव वाले ही खा गए | जब अपने गाव के अन्दरगया तो कुछ आदर्श नागरिक झारखण्ड की दुर्दसा की कहानी सुना रहे थे |
अपने नानी के घर जब इतने सालो बाद गया तो देखा बदलाव चूका हैं लोग पहले 9,10 बजे रात तक बातेकरते थे अब शाम को बजे घरो में बंद हो जाते हैं क्यूंकि रात में नक्सली हमेशा आते हैं जबकि मुख्य शहर से नानी के घर की दुरी km हैं |
झारखण्ड पे लिखना शायद कोई आसन काम नहीं क्यूंकि वहा सभी खामोश हैं और शायद इसलिए की शायद कोईसपना फिर से नीरस आँखों में जाए |
जब डेल्ही आने लगा तो वहा के लोकल सोंग को सुना जिसे मैंने कविता का शकल दिया |

" सुनी आँखों में कोई ख्वाब देना खुदा क्यूंकि अब ख्वाब से dar लगता हैं "
देखा था कभी एक ख्वाब खुबसूरत जहा के लिए आसमान के कुछ सितारों के लिए "
अब जमी से भी dar लगता हैं आसमान से भी dar लगता हैं अब ख्वाब मैं क्या देखू
अब तो मुझे अपने अक्स से ही dar लगता हैं"







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