मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012



एक शाम शिमला की ख़ूबसूरत पहाड़ो में एक गीत गुनगुनाता एक पथिक जा रहा हैं पता नहीं उसे उसके गीत सिर्फ पहाड़ वादिया ही सुन सकती हैं पहाड़ो की सन्नाटो के बिच उसकी आवाज गूंज रही हैं कुछ दर्द का नगमा हैं शायद जो मैं नहीं समझ पा रहा हजारो जो पहाड़ो की खूबसूरती देखने जाते हैं कुछ पल सुकून के लिए उनके समझे के परे हैं हैं वोह दर्द क्यूंकि वोह लौट जायेंगे waha से कुछ पलों के बाद बाकि रहेगा सिर्फ एक नगमा जो दूसरी भासा में गा रहा हैं



रफ्ता रफ्ता शाम ढलेगी लोग दुबक जायेंगे गरम लिहाफ में वोह जगता रहेगा क्यूंकि पेट की गर्मी ने उसे इन्सान से पुतला बना दिया हैं उसके गीत कुछ पहाड़ी भाषा में थे जिसका मतलब था



" शारीर दिया रब जज्बात दिया रब फिर दुःख क्यूँ दिया रे रब"



कोलावेरी के ज़माने में रब सिर्फ गर्ल फ्रेंड में दीखता हैं पहाड़ो में नहीं






अविनाश