रविवार, 5 सितंबर 2010

यहाँ हम तुम थे कुछ तनहा तनहा

कभी हम तुम थे अजनबी तो कभी यहाँ तनहा तनहा
कभी हम साथ थे पर फिर भी लगता था तनहा तनहा
एक सफ़र पे चलने की हसरत किसे नहीं होती
कभी जो किया शुरू चलने को साथ मगर दिल क्यूँ था कुछ तनहा तनहा

बंजारापन आवारापन पर येह कैसी थी अगन
तुम नहीं हो येह मालूम हैं मुझे पर कभी जाब साथ थे
तो भी क्यूँ लगा मुझे बस तनहा तनहा