गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

शीर्षक हिन्

"दर्द को को कोई नाम न दो इसे बस यु ही बयां होने दो"
कभी कागज पे तो कभी आँखों से बस कह जाने दो "

मैं हिंदुस्तान का एक आम इन्सान हु जिसकी कोई पहचान नहीं अगर आप मुझे हिंदी में हिन्दुस्तानी कहकर बुलाएँगे तो शायद मैं एक गरीब हिन्दुस्तानी हु |
जो १४५०० की मामूली तनख्वाह में अपनी जिन्दगी और अपने सपनो से लड़ रहा हैं |पर अगर आप मुझे इंडियन कहेंगे तो शायद मैं एक ब्रांडेड इंडियन हु जो air conditioner ऑफिस में ८ घंटा काम करता हैं और खुद के चेहरे पे एक नया चेहरा ओढ़े एक धनि इन्सान हैं क्यूंकि अंग्रेजी में इंडिया धनि लगता हैं | मेरा कोई वजूद नहीं यह सिर्फ मेरी कहानी नहीं बल्कि GURGANO में काम करने वाले लाखो युवाओ की कहानी हैं जो समय से पहले बूढ़े हो चुके हैं पर सब अपने नए चेहरे पे MASSAGE और महँगी CREAM पोते खुद को युवा बताते हैं |
मैं युवा नहीं बल्कि हिंदुस्तान का वोह बदसूरत चेहरा हु जिसे देश की समाज की या BURAIO से कोई लेना देना नहीं क्यूंकि आधुनिकता के दौर में हम युवा एक मशीन हैं जिससे बड़ी कंपनिया लाखो डोलर कमाती हैं और बदले में चन्द रूपये थमा देती हैं | हम सपनो की दुकान सजाते हैं क्यूंकि बचपन से हमें सिर्फ सपनो की दुनिया में जीना सिखाया जाता हैं | हमने अपनी वजूद को १० क्लास में ख़तम कर दिया क्यूंकि तभी से हमारे ब्रांडेड माँ बाप ने हमसे बहुत सारी आशाये हमारे ऊपर थोप दी | मैं कभी युवा नहीं बन पाया कहने को मैं जिम जाता हु ताकि अपनी युवा शक्ति को दिखा सकू पर मैं फिर भी युवा नहीं हु क्यूंकि युवा वोह होता हैं जिसके अन्दर शक्ति हो जो अत्याचार न सहे पर बचपन से हमारी अन्दर के उस शक्ति को माँ बाप समाज ने कुचल कर रख दिया क्यूंकि आज राष्ट्र को युवा नहीं बल्कि सपनो की दुनिया में जीने वाला एक झूठा इन्सान चाहिए जिसके पास पैसा हो गाड़ी हो क्रेडिट कार्ड हो |
मैं कोई पत्रकार नहीं जो मैं लिखता हु अपने अन्दर का दर्द हैं | कभी विवेकनद ने कहा था हिंदी को दिल मे रखो और उसपे गर्व करो की तुम हिंदी जानते हो जो संसार की सबसे शुद्ध और पवित्र भाषा हैं | पर हमारे साथ अन्याय होता रहा अब हिंदी बोलने वाले लोग GURGANO में या नॉएडा में या कही भी भूखे मरते हैं क्यूंकि अन्गेरोजो ने हमें आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड रखा हैं क्यूंकि इंग्लिश ने हमें रोटी कपडा और मकान तीनो मुख्या चीजे पर्दान कर दी हैं | हमारी अपनी कोई अस्तित्व नहीं क्यूंकि हमने खुद के वजूद को बेच रखा हैं इसलिए १० घंटे काम करने पे भी हमारे मेनेजर हमें गलिय बकते हैं क्यूंकि उन्होंने ने भी अपनी जमीर गिरवी राखी हैं महँगी सालाना PACKAGE पे | युवा अब युवा नहीं बल्कि खोखला इन्सान हैं जो रोज सुबह १२ बजे उठता हैं और जिन्दगी की जदोजहद में खुद को भुला जाता हैं | मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं तू गांव से आया हैं इसलिए तुझे ब्रांडिंग मार्केटिंग नहीं पता |तू नहीं जनता मेट्रो लाइफ क्या होती हैं |
सही कहते हैं क्यूंकि जब से शहर की दहलीज पे पांव रखा हैं तब से अपने आप को औए अपने गांव को भुला बैठा हु मुझे पता हैं एक दिन वापस जाऊंगा उसी कोयल नदी की आगोश में जहा कभी बचपन में डुबकिय लगता था वापस जाऊंगा राख़ बनके | क्यूंकि इस भागदौड़ में मैं कही खो चूका हु मैं क्या था और क्या हो चूका हु मुझे उम्मीद नहीं की फिर से जी पाउँगा वोह बचपन वोह गांव की मस्ती और वोह भोलापन क्यूंकि सपनो की मीनार पे बैठा करोडो युवाओ की तरह मैं भटक रहा हु मंजील नहीं रास्ता नहीं बस दौड़ और दौड़ |एक दिन थक जाऊंगा भागते भागते फिर गिरूंगा उसी माँ के गोद में जहा से जनम लिया था और देखूंगा आखिरी बार सबको और शायद नाम आँखों से कह जाऊंगा अब इन्सान न बनना भगवन मुझे

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